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कृष्ण

महाभारत युद्ध की बिसात बिछ चुकी है। सेनाएं आमने-सामने हैं। दोनों सेनाओं का सबसे बड़ा आकर्षण है गुरु द्रोण का सर्वश्रेष्ठ शिष्य अर्जुन, जिसने अभी कुछ दिनों पहले ही राजा विराट के युद्ध में इसी कौरव सेना को धूल चटाई थी। अर्जुन के पास ब्रह्मास्त्र समेत संहार के सबसे ज्यादा सिद्ध-अस्त्र हैं। अचानक उस अर्जुन को अपने ही परिजनों पर शस्त्र न उठा पाने का मोह प्याप्त हो जाता है वह योद्धा जिसने इस युद्ध के लिए न जाने कबसे प्रतीक्षा की है, न जाने किस-किस विधि से कैसे-कैसे अस्त्र-शस्त्र अर्जित किये हैं। उसके हाथ से धनुष छूट गया है। अपने-अपने अस्त्र शस्त्रों पर ताव खाये इन सब योद्धाओं में सबसे ज्यादा शस्त्र-सक्षम व्यक्ति इतना मानवीय हो उठता है कि उसके भीतर का मनुष्य उसके योद्धा पर भारी पड़ जाता है। महाभारत जो कि व्यक्तिगत श्रेष्ठता सिद्ध करने का सबसे बड़ा मंच है इस मंच पर आकर इस व्यक्ति को अचानक मछली की आंख के बजाय पूरी दुनिया दिखाई देने लगी है। साध्य के बजाय साधन दिखने लगता है? कैसा सुंदर विरोधाभास है; कितना अद्भुत है कि प्रकृति ने संहार के सबसे भयावह साधन सबसे विनम्र हाथों में सौंपे हैं! अब अर्जुन को ...